रविवार, २४ ऑक्टोबर, २०१०

पता ही नही चला

बहते बहते जमीपर आ पहुंचे 
पता ही नही चला ऐसे मुझे डुबाया आपने

पिछे  चलते चलते आज तक आ पहुंचे 
पता ही नही चला ऐसे मुंह खुलाया आपने 

रात ढलते ढलते सुरज की किरण आ पहुंचे 
पता ही नही चला ऐसे सपने दिखाये आपने 

रोते रोते अचानक हंस जो हम पडे 
पता ही नही चला आंसू मेरे खतम  कराये आपने ..

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